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निस-द्यौस खरी उर-माँझ अरी / घनानंद

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निसि द्यौस खरी उर माँझ अरी छबि रंग भरी मुरि चाहनि की.
तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैं,ढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की.
छत द्वै कटि पै बट प्रान गए गति हों मति में अवगाहिनी की.
घनआँनंद जान लग्यो तब तें जक वागियै मोहि कराहनि की.