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नींद से आगे की मंज़िल / शहरयार
Kavita Kosh से
ख़्वाब कब टूटते हैं
आँखें किसी ख़ौफ़ की तारीकी से
क्यों चमक उठती हैं
दिल की धड़कन में तसलसुल बाक़ी नहीं रहता
ऎसी बातों को समझना नहीं आसान कोई
नींद से आगे की मंज़िल नहीं देखी तुमने।