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नींद है या डर ? / रमेश रंजक
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रात आधी, शान्त है सागर
चन्द्रमा ने लहरियों को
क्या खिलाया है
जहाँ जल था, वहाँ पर
थल निकल आया है
ज्वार-भाटे भी हुए कायर
बँधे हैं जलयान
रस्सी से किनारों पर
जिस तरह से गड़े हों
श्मशान में पत्थर
यह नशीली नींद है या डर ?
रात आधी शान्त है सागर !