भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीं तो / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कद तांई थूं
बारम्बार इणीज भांत
चुपचाप
दांत भींच
तिलमिलांवतो रैसी
कद तांई
औ बुगलो करतौ रैसी
थारो गटको
नींतर
घुमा’र टेक
इण सूनै बगत री गुद्दी मांय
जे दिन मांय
तारा निजर नीं आवै
तो देखजै..।