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नीम-तरू से फूल झरते हैं / किशन सरोज
Kavita Kosh से
नीम-तरू से फूल झरते हैं
तुम्हारा मन नहीँ छूते
बड़ा आश्चर्य है ।
रीझ, सुरभित हरित-वसना
घाटियों पर
व्यँग्य से हंसते हुए
परिपाटियों पर
इन्द्रधनु सजते-संवरते हैं
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है ।
गहन काली रात
बरखा की झड़ी में
याद डूबी, नीन्द से
रूठी घड़ी में
दूर वशीँ-स्वर उभरते हैं
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है ।
वृक्ष, पर्वत, नदी,
बादल, चाँद-तारे
दीप, जुगनू, देव-दुर्लभ
अश्रु खारे
गीत कितने रूप धरते हैं
तुम्हारा मन नहीं छूते
बड़ा आश्चर्य है ।