नीरजा पीर / रमेश रंजक
टूटे सपन काँच की किरचें
यादें लगें ततैया मिरचें
कैसे बाँधे धीर नीरजा पीर प्रान की
बँधी नयन की डोर जिस घड़ी
जला प्यार के दिये से दिया
ऐसा लगा कि जीवन भर की
तुमसे दर्द उधार ले लिया
सारा चैन ब्याज में देकर
अनियन्त्रित घायलपन लेकर
प्यार भँमीरी हुई महाजन के मकान की
दिन की तपन, रात का चन्दन
फूल सरीखे साँझ-सकारे
हमने तो अँजुरी भर-भर कर
सिरहाने रख दिए तुम्हारे
करके अर्ध्य समूचा जीवन
प्रीत-रीत का आभारीपन
दिन-दिन चढ़ता गया सीढ़ियाँ इम्तहान की
जाने कब होगी ये तड़पन
बाँहों की साँकल में बन्दी
कब मन का मरुथल महकेगा
कब होंगी साँसें मकरन्दी
आँगन की अनमनी उदासी
आँख पनीली प्यासी-प्यासी
कब तक कटी पतंग रही आसमान की