नीरव भाषण / महादेवी वर्मा
गिरा जब हो जाती है मूक
देख भावों का पारावार,
तोलते हैं जब बेसुध प्राण
शून्य से करुण कथा का भार;
मौन बन जाता आकर्षण
वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ बनता पतझार वसन्त
जहाँ जागृति बनती उन्माद,
जहाँ मदिरा देती चैतन्य
भूलना बनता मीठी याद;
जहाँ मानस का मुग्ध मिलन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ विष देता है अमरत्व
जहाँ पीड़ा है प्यारी मीत,
अश्रु हैं नयनों का श्रॄंगार
जहाँ ज्वाला बनती नवनीत;
मृत्यु बन जाती नवजीवन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
नहीं जिसमें अत्यंन्त विच्छेद
बुझा पाता जीवन की प्यास,
करुण नयनों का संचित मौन
सुनाता कुछ अतीत की बात;
प्रतीक्षा बन जाती अंजन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
पहन कर जब आँसू के हार
मुस्करातीं वे पुतली श्याम,
प्राण में तन्मयता का हास
माँगता है पीड़ा अविराम;
वेदना बनती संजीवन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ मिलता पंकज का प्यार
जहाँ नभ में रहता आराध्य,
ढाल देना प्राणों में प्राण
जहाँ होती जीवन की साध;
मौन बन जाता आवाहन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ है भावों का विनिमय
जहाँ इच्छाओं का संयोग,
जहाँ सपनों में है अस्तित्व
कामनाओं में रहता योग;
महानिद्रा बनता जीवन
वहीं मिलता नीरव भाषण।
जहाँ आशा बनती नैराश्य
राग बन जाता है उच्छ्वास,
मधुर वीणा है अन्तर्नाद
तिमिर में मिलता दिव्य प्रकाश;
हास बन जाता है रोदन
वहीं मिलता नीरव भाषण।