भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नूंवी हवा (1) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
बसां रेलां मांय
सफर सूं पैली
सिगरेट रो पाकेट
अर तुळयां री पेटी लेवणी
सावचेती रै नांव
नाड़ नै च्यारूंमेर घुमाय,
निजरां नाप‘र।
सुळगाय सिगरेट
निरांत सूं
सुट्टा खींचणा।