भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नृत्य गीत / 2 / भील

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पिपर्यापाणि न मालि पर सकर्यानो वेलो वो।
वेले वेले सुले जणिंग ठगो वो।
पिपर्यापाणि न मालि पर सकर्या नो वेलो वो।
आइणि तूते लाडा वालि, छल्ला पुर्यान वाएँ झुणि लागे वो।
मंगली तू ते लाडा वालि, कुवारला पुर्यान वाएँ झुणि लागे वो।
आरस्या वालो कुवो मारो, फुंदा वाली बाल्ट्ये पाणि भरो वो।
नि माने ते मा माने वो, फूंदा वाली बाल्ट्ये पाणि भरो वो।

- यह गाली गीत है। पिपर्यापानी की माल (ऊँची समतल भूमि) पर शकरकंद की बेल है। बेल के सहारे सोलह औरतों को ठगूँ। समधन तू तो पति वाली है, छेला लड़के के पीछे मत लगे। मंगली तेरा भी पति है कुँवारे लड़के के पीछे मत लगे। मेरा कुआँ काँच वाला है, फुंदे वाली बाल्टी से पानी खींच रही हूँ, नहीं माने तो मत मान, फुंदे वाल बाल्टी से पानी खींच रही हूँ।