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नेति नेति / कन्हैया लाल सेठिया

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तू गैलो
फिरै सोधतो
अताळ पताळ
अमूळ सिसटी रो मूळ
तू साव टींगर बुध
करै कुबध
कांई थारी खिमता ?
 मानै मरणधरमां देही नै साच
के तनैं मिल्या
थारै मन चाया मा बाप ?
कै तनैं मिल्यो सोक्यूं
जिंयां थारी चावणा
तू कतो’क सबळो
पड़ ज्यासी ठा
रह ऊभो दोन्यू पगां नै
उठा’र सागै
कोनी देखणै सकै निज नै
बिना राख्यां दरपण मुंडागै
आज्यासी भटक भटका’र
मतै ही चांकै !