नैरंगियाँ चमन की तिलिस्मे-फ़रेब हैं।
उस जा भटक रहा हूँ जहाँ आशियाँ न था॥
पाबंदियों ने खोल दी आँखें तो समझे हम।
आकर क़फ़स में बस गए थे आशियाँ न था॥
जो दर्द मिटते-मिटते भी मुझको मिटा गया।
क्या उसका पूछना कि कहाँ था कहाँ न था॥
अब तक वो चारासाज़िए-चश्मेकरम है याद।
फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥