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नौ अगस्त, ४२ / हरिवंशराय बच्चन

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नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
क्रांति की ध्वजा उठी,
जाति की भुजा उठी,
निर्विलम्ब देश एक हो खड़ा हुआ समस्त।

नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
हाट हिटलरी लगी,
नग्न नीचता जगी,
मुल्क ने सहा कठोर ज़ोर-जुल्म ज़बरदस्त।

नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
देश चोट खा गिरा,
अत्ति-आपदा घिरा,
और बंद जेल में पड़े हुए वतन-परस्त।

नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
पर न हो निराश मन,
क्योंकि क्रूरतम दमन
भी कभी न कर सका स्वतंत्र राष्ट्र-स्वप्न ध्वस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!
नौ अगस्त!