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न दाइम ग़म है नै इशरत / ज़फ़र
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न दाइम ग़म है नै इशरत कभी यूँ है कभी वूँ है
तबद्दुल याँ है हर साअत कभी यूँ है कभी वूँ है.
गिरेबाँ-चाक हूँ गाहे उड़ाता ख़ाक हूँ गाहे
लिए फिरती मुझे वहशत कभी यूँ है कभी वूँ है.
अभी हैं वो मेरे हम-दम अभी हो जाएँगे दुश्मन
नहीं इक वज़ा पर सोहबत कभी यूँ है कभी वूँ है.
जो शक्ल-ए-शीशा गिर्यां हूँ तो मिस्ल-ए-जाम ख़ंदाँ हूँ
यही है याँ की कैफ़िय्यत कभी यूँ है कभी वूँ है.
किसी वक़्त अश्क हैं जारी किसी वक़्त आह और ज़ारी
ग़रज़ हाल-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त कभी यूँ है कभी वूँ है.
कोई दिन है बहार-ए-गुल फिर आख़िर है ख़ज़ाँ बिल्कुल
चमन है मंजिल-ए-इबरत कभी यूँ है कभी वूँ है.
'ज़फ़र' इक बात पर दाइम वो होवे किस तरह क़ाइम
जो अपनी फेरता नीयत कभी यूँ है कभी वूँ है.