न यज्ञ साधन न तप क्रियाएँ,
न तो दान ही हमने कुछ दिए हैं।
परन्तु मन में न यह भरोसा,
पियूष हरिनाम का पाई हैं।
न वेद विधि का विधान है कुछ,
न आत्म अनुभव का ज्ञान है कुछ।
यही है केवल कि श्याम सुंदर,
चरण तुम्हारे ही गह लिए हैं।
न बुद्धि विद्या ही काम आती,
न पूर्व के पुण्य ही हैं साथी।
प्रभु! कृपा दृष्टि है तुम्हारी,
जिसके बल पर ही हम जिए हैं।
अधम हैं अपराधी लीन हैं हम,
सभी तरह दीन हीन हैं हम।
कहते हो तुम अधम उधारण,
इसी पे विश्वास दृढ़ किए हैं।
तुम्हारी छवि ज्योति के लिए ही,
है ‘बिन्दु’ घृत पुतलियाँ बत्ती।
शरीर दीवट है जिसके ऊपर,
दृगों के सुंदर ये दो दिये हैं॥