भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंचम / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

किराना घराने के सबसे अज़ीम गायक
अब्दुल करीम ख़ां से एक दिन उनके एक मुरीद ने पूछा
उस्ताद आपने तो सातों सुर साध लिये हैं अब कुछ बचा नहीं
खरज से रिखभ तक तीनों पर्दों के आरपार चली जाती है आपकी मीठी आवाज़
करीम ख़ां उदास स्वर में बोले
अरे कहां बेटा सिर्फ़ पंचम को ही मैं थोड़ा-सा समझ पाया हूँ
और अब इस उम्र में क्या कर पाऊंगा और
मुरीद भी उदास हो गये
उन्हें उम्मीद थी उस्ताद कुछ और रोशनी डालेंगे
अपने बेजोड़ रियाज़ पर

बहुत पहले किसी किताब में पढ़ा था यह वाक़या
उसे याद करते हुए सहसा हाथ रुक जाता है
जब भी लिखने बैठता हूं कोई कविता।