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पढ़ाई / उषा यादव
Kavita Kosh से
सुबह पढ़ाई, शाम पढ़ाई,
तनिक न दे आराम पढ़ाई,
मुझ जैसी छोटी बच्ची पर,
कितना भारी काम पढ़ाई।
मोटर पड़ी मेज के ऊपर,
भालू लुढ़क रहा सोफ़े पर,
इनके साथ खेलना तो क्या,
छूने की नौबत न आई।
गुड़िया सिसक रही बेचारी,
मुझको बुला –बुला कर हारी,
उसके आँसू पोंछ सकूँ मैं,
इतनी भी छुट्टी न पाई।
होम वर्क की चिंता सिर पर,
उस पर इम्तहान का है डर,
थकी पहाड़े रटते –रटते,
देखो ना, कैसी कुम्हलाई।