पतझड़ बरगद / पतझड़ / श्रीउमेश
लेकिन दुखिया पतझड़ गाछी केॅ नैं छै केकरे आसा।
भला दीन-दुखिया के की भगवानौं समझै छै भासा?
मारा या दाहा होला पर विलखै जेना दुखी किसान।
डाका पड़ला पर व्यापारी के जेना हहरै छै प्रान॥
धनकटनी होला पर खेतोॅके सोभा में होय छै ह्रास।
ओन्हैं यै पतझड़ में होलै ई उपकारी गाछ उदास॥
गाछों कहलक ”केकरा कहियै के करतोॅ हमरोॅ उद्धार?“
सूना में बैठी केॅ गाछीं धूनै छेॅ अपनोॅ कप्पार॥
सगनौती-दुलरंती धीया झूलै छेली बॉहीं में।
बाट बटोही काटै छेलोॅ दुपहरिया यै छाहीं में॥
बोॅर-बरातीं पाबै छेलोॅ यै गाछी के नीचें त्रान।
माल-मवेसीं यहीं जुड़ाब कड़कड़िया रौदी सें प्रान।
चिड़ियाँ-मुनियाँ जै डारी पर फुदकी-फुदकी गावेॅ गीत।
यै पतझड़ में वहूँ तजलकी यै गाछी के लागलोॅ प्रीत॥
दुनियाँ के अजगूत रवैया देखी प्रान कचोटै छै॥
भरला केॅ तेॅ सभैं भरै छै छुच्छा केॅ के पूछेॅछै।