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पत्थर / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पत्थर नही होते तो पैदा नही
होती आग
नही गढ़ी जाती मूर्तियाँ
देवताओं का आस्तित्व न होता
पत्थर रोकते हैं नदियों का वेग
वरना हम पानी में डूब जाते
पत्थर न होते तो हमारे आवाजाही
के लिए नहीं बन पातीं सड़कें
तामीर न हो पाती इमारतें
पत्थर को पत्थर कह कर बहुत
किया गया है अपमानित
पत्थर दिल जैसी उपमाएँ खोजी
गई हैं
जिन चीज़ों को हम कठोर
समझते है, उनके भीतर हमारी
अनन्त कोमल कल्पनाएँ छिपी हुई है
पत्थर उनमें से एक हैं