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पत्थर युग में / रमा द्विवेदी
Kavita Kosh से
ऐसा लगता है,जैसे हम,
पत्थर युग की ओर
धीरे-धीरे सरक रहे हैं।
अच्छा है अगर,
सब पत्थर बन जाएं,
कम से कम
ऊंच-नीच की खाई तो
पट जाएगी,
और भावनाएं इस तरह,
लहूलुहान तो नहीं होंगी।