कपड़े धोती
खाना बनाती
कमरों को चमकाती
बच्चों के पीछे पागल
तुम सिर्फ़ पत्नी नहीं हो
पूरा-का-पूरा घर हो
जहाँ मेरा अर्थ खुलता है
मेरा ठौर वहीं है
आगे-पीछे बहुत कुछ है
पर अनुराग से बँधा जीवन ही
थामता है
और दुनिया के बीच
मुझे धरता है
(रचनाकाल : 1990)
कपड़े धोती
खाना बनाती
कमरों को चमकाती
बच्चों के पीछे पागल
तुम सिर्फ़ पत्नी नहीं हो
पूरा-का-पूरा घर हो
जहाँ मेरा अर्थ खुलता है
मेरा ठौर वहीं है
आगे-पीछे बहुत कुछ है
पर अनुराग से बँधा जीवन ही
थामता है
और दुनिया के बीच
मुझे धरता है
(रचनाकाल : 1990)