भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पत्थर होता जिस्म़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
तुम गढ़ते रहे
देह की मिट्टी पर
अपने नाम के अक्षर
हथौडो़ की चोट से
जिस्म़ मेरा
पत्थर होता रहा..