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पद / 4 / बाघेली विष्णुप्रसाद कुवँरि
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वृन्दावन-पावस छायो।
चहूँ दिसि कारे अम्बर छाये नीलमणी प्रिय मुख छायो॥
कोयल कूक सुमन कोमल के कालिंदि कूल सुहायो।
विष्णु कुँवरि जग श्याम रँग छायो श्यामहि सिंधु समायो॥