भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / 6 / रानी रघुवंशकुमारी
Kavita Kosh से
सीतल मन्द सुगंध समीर लगे जपि सज्जन की प्रिय बानी।
फूलि रहे बन-बाग समूह लहै निमि कीर्ति गुणकार ज्ञानी॥
नीक नवीन सुपल्लव सोह वढ़ै जिमि प्रीति के स्वारथ जानी।
गान रै कल कीर चकोर बढ़ैं जिमि बिप्र सुमंगल बानी॥