भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पपीहे के प्रति / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसको अनुराग सा दान दिया,
उससे कण मांग लजाता नहीं;
अपनापन भूल समाधि लगा,
यह पी का विहाग भुलाता नहीं;
नभ देख पयोधर श्याम घिरा,
मिट क्यों उसमें मिल जाता नहीं?
वह कौन सा पी है पपीहा तेरा,
जिसे बांध हृदय में बसाता नहीं!

उसको अपना करुणा से भरा,
उर सागर क्यों दिखलाता नहीं?
संयोग वियोग की घाटियों में
नव नेह में बांध झुलाता नहीं;
संताप के संचित आँसुवों से,
नहलाके उसे तु धुलाता नहीं;
अपने तमश्यामल पाहुन को,
पुतली की निशा में सुलाता नहीं!

कभी देख पतंग को जो दुख से
निज, दीपशिखा को रुलाता नहीं;
मिल ले उस मीन से जो जल की,
निठुराई विलाप में गाता नहीं;
कुछ सीख चकोर से जो चुगता
अंगार, किसी को सुनाता नहीं;
अब सीख ले मौन का मन्त्र नया,
यह पी पी घनों को सुहाता नहीं।