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परकीया नायिकाक प्रति / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
हुनकर अकारण क्रोध अहाँक हृदयमे पैसि गेल अछि
जेना पातर कारी तग। रुमालपर
फुल जुनि काढ़ू-बनि जायत अनचोकेँ गहुमन साँप!
फन काढ़ि लेत अतीतक निनायल स्मृति...
हुनकर अकारण क्रोध, आ औखन हमर सकारण सिनेह
आबो बाजू, की लेब अहाँ -
रुमालपर चम्पाक फूल, अथवा फन काढ़ैत साँप?
आबो बाजू, किएक नहि अयलहुँ ओहि साँझ
धारक कात नाओ ल’
करिते रहि गेलहुँ हम राति भरि प्रतीक्षा!
ओहि साँझ नहि अयलहुँ अहाँ धारक कात-
रातिमे छल अहाँक विवाह!
नदीमे छल तखनो पानि अथाह...
आ, एखनो जीवित अछि हमर सकारण सिनेह
आ, एखनो हुनकर अकारण क्रोध झहरैत अछि!
अहाँ बरखाक अथाह नदी छी
आ, हम किनारपर ठाढ़ देखि रहल छी
अपन डूबल नाओ!
(मिथिला मिहिर: 10.6.62)