भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परछाइयों की रूपरेखा / रकेल लेन्सरस
Kavita Kosh से
आज ज़रूर सब जगह शुक्रवार रहा होगा,
कितने देवदूत छतों से
पटरी पर गिरे हैं ।
शुक्रवार कोई दिन नहीं, परन्तु है एक संयुक्त काल
संभाव्य, भविष्य, बहुवचन, भूतकालिक ।
सीमा पर एक सीमा-शुल्क चौकी
जो अलग करती है जीवित लोगों को बचे हुए लोगों से ।
उस दिन शुक्रवार ही रहा होगा
और तुम मेरे साथ नहीं हो ।
मगर तुम्हारी अनुपस्थिति गाढ़ी होकर
आगे बढ़ रही है एक सघन बाँध की तरह ।
तुम्हारी आत्मा मुझे घेर लेती है, नींद में चलती हुई, दिव्य
भारहीन तरीके से मेरे अन्दर फिरने का संकल्प लिए,
हर जगह से प्रकट होती, सबकुछ से लबालब भरी हुई,
शून्य में लौटती, वह समानार्थी
शुक्रवार की रात और खाली बिस्तर का ।
स्पानी भाषा से हिन्दी में अनुवाद : रीनू तलवार