परदेशां म्हं चाल दिया दिल / मेहर सिंह
परदेशां म्हं चाल दिया दिल तोड़ कै नार नवेली का
तेरे बिना भरतार अड़ै जी लागै नहीं अकेली का
हो चाहे कितना ए खेद बीर नै मरदां नै के बेरा
तारे गिण गिण रात चली जा होज्या न्यूएं सवेरा
बिना पति के ओड हवेली हो भूतां का डेरा
तेरे बिना रहै घोर अंधेरा तू दीपक महल हवेली का
दिल की दिल म्हं रहै पति बिना होता ना मन चाहया
ओड़ उम्र म्हं छोड़ चल्या तूं कुछ ना खेल्या खाया
कुछ भी अच्छा लागै कोन्या धन दौलत और माया
तीज ज्यौहार चले जां सुक्के मन लागै नहीं उनम्हाया
मद जौबन म्हं भरी सै काया मद पै फूल चमेली का
हाळी बिन धरती सुन्नी और बिना सवार के घोड़ी
बिना मेल के कलह रहै नित घणी नहीं तो थोड़ी
जल बिन मीन तड़फ कै मरज्या न्यूए बीर मर्द की जोड़ी
बिना पति के बीर की कीमत उठै ना धेला कोड़ी
बिन परखणियां लाल करोड़ी होज्या सस्ता धेली का
सारी उम्र बिता दयूं मैं पिया तेरे गुण गा कै
याद राखिए कदे भूलज्या प्रदेशां म्हं जा कै
राजी खुशी की चिट्ठी गेरिए खुश हो ज्यांगी पा कै
आवण की लिखैगा मैं तो गाऊं गीत उनम्हा कै
“मेहर सिंह” कद रंग लूटैगा मद जौबन अलबेली का