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परम गोप्य अतिसय अमल / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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परम गोप्य, अतिसय अमल, सुचि रस यह अनमोल।
कबहुँ न परगट कीजियै, कितहूँ बाचा खोल॥
प्रियतम परसत प्रिया के, प्रिया पी‌उ के अंग।
तनिक न सहम-सँकोच मन, करत बिबिध रस-रंग॥
कहत न काहू सौं कबहुँ, दो‌उ एहि रस की बात।
रहत सदा मन-मधुप पै रस-सरोज मँडरात॥
रस अगाध सर रहिय नित मगन, उछरियै नायँ।
जानि न पावै पै न को‌उ, को‌उ न आवैं जायँ॥