परिवर्तन रचो ! / निर्मल शर्मा
माली जब मरने लगा
याद किया उसने-
सारे फूलों को
उनकी अलग-अलग ख़ुशबू
रंग और ख़ूबसूरती को ।
पौधों से लेकस्र
वृक्ष होने तक की
सारी आपदाएँ
कौंध गईं एकबार
उसके दिमाग़ में ।
उसे याद आई
जलाने वाली धूप / और
उसी तरह शीत
पानी की कमी
जड़ों को खाने वाले कीड़े,
बीमारी और,
चौपट हुई फ़सल का विलाप ।
उसे याद आई
बहार,
बहार की ताज़गी
और ताज़गी से भरा हुआ
अपनी पत्नी का चेहरा,
फूलों का रस और
शहद-सा मीठा बेटा !
लेकिन तभी-
सोचने लगा वह
बेटा तो छोटा है
सीधा और नासमझ
कोई भी
फुसला सकता है उसे,
कोई भी पीट सकता है,
कहीं भी
गिर सकता है वह !
उसके पिता जब
मरने लगे थे- उन्हें भी
सालती रही थीं, ये बातें ।
कैसे शुरू शुरू में
भँवरों का गुंजन
लुभा लेता था उसे,
तोतों के रंग / और
उनकी मीठी आवाज़ के पीछे
कुतरे हुए फलों के उदास चेहरे भी
बाद में जाने थे उसने ।
जड़ों में लगने वाले कीड़े
बीमारी और पानी की
कमी के दिनों में निपटने के तरीके भी
अपने पिता के अनुभवों से
जाने थे उसने ।
भँवरों द्वारा
फूलों से पराग चुराने / और
छत्ते से शहद निकालने
तक के अनुभव भी-
एक-एक कर खुलते गए थे
उसके नन्हे-से मस्तिष्क में ।
ठीक इसी समय
उसने बुलाया
अपने शहद से मीठे बेटे को / और
अपनी ज़िन्दगी के
चुने हुए अनुभवों से
भरने लगा रंग ।
भरे जा रहे रंगों का घोल
जैसे-जैसे गाढ़ा होता गया
शहद की मिठास / और
आब में निखार आता गया !
भँवरों की मोहक गूँज के पीछे
पराग चुरा लेने के
ख़तरों से परिचित वह
सतर्क है हर क़दम पर;
और फिर जीवित अनुभव,
विधवा का चरखा तो है नही
कि रुक जाए तो रुका ही रहे ?
वह तो इतिहास है-
कर्मशील हाथों और
भड़कते हुए दिल की तरह
हरकत में आ रहा- इतिहास !
वह-
चुनता रहा है
शहद-से मीठे बेटों की कतारें
और / हवा में भरती हुई
गंध से उड़ती रहती है- लय
लय से मिलता है
ताज़गी का स्पर्श / और
ताज़गी ज़रूरी है
भरपूर बहारों / रंगों
और ख़ुशबू के लिए ।
शहद-से मीठे बेटों की गमक
आ रही है-
बाग़ के हर हिस्से से
बाग़ का नक्शा बदल रहा है !