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पसवाड़ो / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
फिरतां ही
बगत रो पसवाड़ो
बैठग्यो पींदै
मोटो सूरज,
कढावै
दिन रै
धणी री कूट
बौछरड़ा दिवला,
निसरग्या बारै
तोड़‘र अंधेरै री
काल कोटड़ी
बागी तारा
पण कोनी चुण सक्या
एक मत हू‘र
कोई नेता
फाटगी
आपसरी की
थूका फजीती में
फेर भाक !