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पसोपेश में छत बेचारी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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फर्श रोज़ मुस्कराकर कहता,
ऐसी क्या नाराजी।
दूर दूर से हाय हलो क्यों,
पास क्यों नहीं आतीं।

छत बेचारी पसोपेश में,
मिलने कैसे जाऊँ।
मिलने का अंजाम मुर्ख को,
कैसे अब समझाऊँ।