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पहाड़ लाज से झुक गये थे / लाल्टू
Kavita Kosh से
इस बार
पहाड़ों से उतरते
तुम्हें देखता रहा
तुम्हारी चाही सन्तान को
पहाड़ी बादल
मेरे रोओं में बाँटते रहे
सोचता रहा
कैसी होगी वह दुनिया
जहाँ तुम्हारी मेरी
सन्तान खिलेगी
उसे हम
पहाड़ तो जरूर देंगे
जब तुम उसे
मेरी बाँहों में देख
खुश हो जाओ
मैं धीरे से उसे कहूँगा
कैसे उसकी माँ को
मैंने पहाड़ों पर चूमा था
और
लाज से झुक गए थे पहाड़।