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पहिए से आदमी / अनिरुद्ध नीरव
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चक्रव्यूह में खड़े-खड़े
पहिए से आदमी लड़े
एक साँस
जीने का क्षण
महासमर लगे
एक तह कुरेदे
तो
यातना अमर लगे
छाती तक रेत में गड़े
पहिए से आदमी लड़े
समझौते
कंधों पर
विंध्याचल धर गए
बहके तो
विष निर्झर
कान में उतर गए
चेहरे को पेट पर मढ़े
पहिए से आदमी लड़े
कोई
तेजाब नदी
शीश पर गुज़र गई
बौना-मन
बर्फ़ रहा
ज़िन्दगी कुहर गई
कूपों के एटलस पढ़े
पहिए से आदमी लड़े ।