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पानी बिनू पंछी / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
पानी बिनू पंछी फरार होय गेलै।
पोखरी केॅ छाती दरार होय गेलद्यै।
गाय गोरू डिकरै छै,
तोड़े छै खुट्टा।
गाछ बिरीछ हुंकरै छै,
झुलसै छै भुट्टा।
रोहिनियाँ बिचड़ोॅ पुआर होय गेलै।
पानी बिनू पंछी फरार होय गेलै।
पोखरी केॅ छाती दरार होय गेलै।
नदिहौ केॅ सटलो छै,
पीठी सें पेट।
घटो नुकैली छै,
उतरै नैं हेठ।
भोरकी किरनियाँ अंगार होय गेलै।
पानी बिनू पंछी फरार होय गेलै।
पोखरी केॅ छाती दरार होय गेलै।
किसानों केॅ सूझै छै,
दिनैंह केॅ तारा।
की खैतै धीया पूताँ?
होय जयतै भारा।
पातालौह केॅ पानी निस्तार होय गेलै।
पानी बिनू पंछी फरार होय गेलै।
पोखरी केॅ छाती दरार होय गेलै।