पिंजरें में कैद पंछी कितनी उड़ान लाते
अपने परों में कैसे वो आसमान लाते।
काग़ज़ पे लिखने भर से खुशहालियाँ जो आतीं
अपनी ग़ज़ल में हम भी हँसता सिवान लाते।
हथियार की ज़रूरत बिल्कुल नहीं थी भाई
मज़हब की बात करते, गीता कुरान लाते।
तन्हा ज़बान को तो लत झूठ की लगी थी
फिर रहनुमा कहाँ से सच की ज़बान लाते।
पहले ही सुन चुके हैं आँसू के खूब किस्से
अब तो कहीं से ख़ुशियों की दास्तान लाते।