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पिता बारिश में आएँगे / महेश वर्मा
Kavita Kosh से
रात में जब बारिश हो रही होगी वे आएँगे
टार्च से छप्पर के टपकने की जगहों को देखेगें और
अपनी छड़ी से खपरैल को हिलाकर थोड़ी देर को
टपकना रोक देंगे
ओरी से गिरते पानी के नीचे बर्तन रखने को हम अपने बचपन में दौड़ पड़ेंगे
पुराना घर तोड़कर लेकिन पक्की छत बनाई जा चुकी
हमारे बच्चे खपरैल की बनावट भूल जाएँगे
पिता को मालूम होगी एक-एक शहतीर की उम्र
वे चुपचाप हिसाब जोड़ लेंगे मरम्मत का
वह बारिश की क़ीमत होगी जो हमारी ओर से चुपचाप वे चुकाएँगे
उनका छाता, रेनकोट और बरसाती जूता
छूने की अब भी हमारी हिम्मत नहीं है
न उनके जैसा डील किसी भाई को मिला है
माँ उस सूखे रेनकोट को छू रही है ।
पिता आएँगे ।