भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिया-पिया हो, सेज चलोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
पिया-पिया हो, सेज चलोॅ ।
छोड़ोॅ दिन के दुनियादारी
तन भी भारी, मन भी भारी
सुनोॅ बुलाबै छोॅन अटारी
बाकी बचलोॅ कल ही होतै
इखनी घर दिस तेज चलोॅ ।
पिया-पिया हो, सेज चलोॅ ।
दुख सहबोॅ, सुख साथ न छूटेॅ
केकरो खातिर कोय न रूठेॅ
की कुटवोॅ तन, हमरै कूटै
कत्तेॅ रंगबौ दुनियै ठो केॅ
घर सुधि ला, रंगरेज चलोॅ ।
पिया-पिया हो, सेज चलो ।