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पिसतावो / कन्हैया लाल सेठिया

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क्यूं मिली मनैं
मिनखा देही ?
कांई ईं रो कारण
कोई पुरबलै जलमां में
करयोड़ा म्हारा पुत्र,
तो मैं पिसताऊं
क्यूं करया इस्या पुत्र
 जे मनैं मिलती पंखेरू री जूण
हुती म्हारी किरिया मूळ विरत्यां रै अनूसार
कोनी करतो जियो करै मिनख विकारां रै वस अनाचार
कोनी बंधता म्हारै कोई पाप’र पुत्र
कोनी बंधता म्हारै कोई राजनेता रो पिछलग्गू
जको करावै मिंदर’र मसीत रै नांव पर टंटा
लफणै तांई सत्ता
कोनी हुंतो कोई इस्यो धत्रू सेठ
जको बणा सकतो मनैं आप रो चमचो
कोनी बणा सकतो मिनख कोई इस्यो कानून
जको कर सकतो मनैं कोई जुरम में कचेड़ी में हाजर
मनै स्यात मारतो कोई
ग्यान रो ठेकेदार मिनख
मांस रै सुवाद खातर
का स्यात करतो म्हारी हिंस्या फूठरी पांखां खातर
जकी नै बेच’र बो कमातो दमड़ा
मनैं हुवै घणो पिसतावो
मैं क्यूं हुयो मिनख
कोनी जकैरी तिसणा रो कोइ पार
हुवै करोड़ां में कोईसो’क संत
नही’स घणकरा तो मिनखा देही में
परतख राकस !