भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुनर्जन्म / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
सूरज के साथ
मैं भी उगता हूँ
रोज़ सुबह
डूबता हूँ,
ऊबता नहीं
जनमता हूँ फिर-फिर
पूरे ताप के साथ