भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुलकता सौन्दर्य / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
मेरी गोदी में उस दिन
पुलकता सौन्दर्य आया था
न जाने कब से इस
वात्सलय ने आँचल फैलाया था
उषा अरुणाम सी होकर
स्वयं आँगन में उतरी थी
निशा का अन्त आया था
उजाला दिन में छाया था
मेरी कल्पना ने सुंदरम
में शिवम् देखा था
कि मेरी भावना ने शिवम्
में ही सत्यम् देखा था
युगों की साधना को
प्राणजा साकार कर देंगी
उसकी रूप राशि में
त्रिगुण का संगम देखा था।