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पूजा घर के मूरत अइसन मान / रामनरेश वर्मा

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पूजा घर के मूरत अइसन मान साधले कब तक रहबऽ।
जन-जीवन के गीत गुन गुना, गूंगा के भी मुखरित करदऽ।
भूल-भूलैया में जिनगी के,
पड़ के जे सड़ते आयल हे।
खुसहाली ला कभी कमर कस,
बाधा से न लड़ पायल हे।
चाव जगा के ओकर मन में, भाव बढ़े के आगे भरदऽ।
जन-जीवन के गीत गुन गुना, गूंगा के भी मुखरित करदऽ।
दीन-दुखी जन के विकास से,
देस बढ़े में देर न लगते।
देस बढ़ल तो फिर सोना के,
चिरंई दुनिया एकरे कहते।
कोढ़िआयल काया समाज के झाड़-पोंछ के कंचन करदऽ।
जन-जीवन के गीत गुन गुना, गूंगा के भी मुखरित करदऽ।
तोर गीत के गरमाहट से,
युग के बरफ पिघलते जायत।
धुलते मन के मइल मनुज के,
कार-गोर के भेद भुलायत।
उतरत सौ सौ सरग धरा पर, तू धरती के गीत अमरदऽ।
जन-जीवन के गीत गुन गुना, गूंगा के भी मुखरित करदऽ।