भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पूर्ण विराम / मोनिका कुमार / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त
Kavita Kosh से
दिखने में प्रियतम के चेहरे पर गिरी बारिश की बूँद,
तूफ़ान की आहट से पत्ते पर दुबका बैठा भौंरा जैसे।
ऐसी वस्तु जिसमें उत्साह भरा जा सके,
मिटाया जा सके, मोड़ा जा सके।
हरी परछाईं वाला पड़ाव ना कि अन्तिम स्टेशन।
असल में जिस पूर्ण विराम को हम किसी भी सूरत-ए-हाल में
पालतू बना लेना चाहते हैं
वह रेत से बाहर निकल रही हड्डी है,
टूटता हुआ दरवाज़ा,
विनाश का संकेत है।
यह तत्वों का विराम चिह्न है।
लोगों को इसे विनम्रता से बरतना चाहिए,
उसी एहतियात से जैसी हम
ख़ुद को भाग्य को सौंपते हुए बरतते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार