भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत / आरसी चौहान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज पहली बार
अम्लान सूर्य
हँसता हुआ
पूरब की देहरी लाँघ रहा है

लडकियाँ हिरनियों की माफिक
कुलाँचें भर बतिया रहीं
हवाओं के साथ
पतझड़ में गिरते पत्ते
रच रहे हैं
पृथ्वी के पन्नों पर मधुर गीत
हवा के बालों में
गजरे की तरह गुँथी
उड़ती चिड़ियाँ
पंख फैलाकर नाप रहीं आकाश

समुद्र की अठखेलियों पर
पेड़ पौधे पंचायत करने जुटे हैं
गीत गाती नदी तट पर
स्कूल से लौटे बच्चे
पेड़ों पर भूजा चबाते
खेल रहे हैं ओलापाती
युवतियाँ बीनी हुई
ईंधन की लकड़ियाँ
बाँध रहीं तन्मय होकर

चरकर लौटती गायें
पोखरे का पानी
पी जाना चाहतीं
एक साँस में जी भरकर
चौपाल में ढोल-मजीरे की
एक ही थाप पर
नाच उठने वाली दिशाएँ
बाँध रही घुँघरू
थिरक थिरक

अब जबकी सोचता हूँ
कि सपने का मनोहारी दृश्य कब होगा सच।