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पेइचिंग : कुछ कविताएँ-3 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
"नी हाव" कहो तो
मुस्कराता है सूरज
पेइचिंग में
लांगतान या बेहाई पार्क में,
क्विंग और मिंग वंशों के प्रासाद में,
मिंग के भूमिगत मक़बरे की छतों पर
दर्जनों फ़्लाईओवरों और मार्कोपोलो पुल पर
माथे पर हैट धरे
अभी भी टहलता हुआ नज़र आ सकता है सूर्य,
अक्सर वह दिखाई दे जाता है थ्येनआनमन पर,
इन दिनों थोड़ा व्यथित, व्याकुल और व्यग्र
अगर चढ़ जाएँ हम लम्बी दीवार पर
तो हाथ मिला सकते हैं
सूरज से
सूर्य
मेहरबाँ है पेइचिंग पर
सदियों से मेहरबाँ सूर्य
आज भी मेहरबाँ है इस कदर
कि रात को जल्दी फटकने नहीं देता
पेइचिंग की दहलीज़ पर।
नी हाव= नमस्कार (चीनी भाषा में)