पेट राम ने ख़ूब छकाया / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
इसको कहते लोग समोसा,
उसको कहते लोग कचौड़ी।
लेकिन जिसमें मज़ा बहुत है,
वह कहलाती गरम पकौड़ी।
गरम पकौड़ी के संग चटनी,
अहा! जीभ में पानी आया।
रखी प्लेट में लाल मिर्च थी,
तभी स्वर्ग-सा सुख मिल पाया।
इतना खाया, इतना खाया,
ख्याल ज़रा भी न रख पाया।
किन्तु बाद में पेट राम ने,
मुझको जी भर ख़ूब छकाया।
एक तरफ़ तो टॉयलेट था,
एक तरफ़ मैं खड़ा बेचारा।
बार-बार कर स्वागत मेरा,
टॉयलेट भी थक कर हारा।
घर के सभी बड़े बूढ़ों ने,
आकर तब मुझको समझाया।
उतना ही खाना अच्छा है,
जितना पेट हजम कर पाता।
ठूँस-ठूँस कर पेट भरोगे,
कहाँ स्वस्थ तब रह पाओगे।
बीमारी को बिना दवा के,
ठीक नहीं फिर कर पाओगे।
इसीलिए तो कहा गया है,
खाना बस उतना ही खाओ।
गरम-गरम और बिलकुल सादा,
जितना पूर्ण हज़म कर पाओ।