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पेड़ / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
रास्ते का पेड़
दुपहरिया में तप
पत्तियों की ताल पे
झुमक झूम झूमर गीत गाता है ।
राह का थका
हर मुसाफिर
तने पर सर रख
सुस्ताता है
पत्तियों की तालियों से
सुर मिला
गुनगुनाता है
पसीने की बूँद पोंछ
थकान उसे सौंप
चला जाता है ।
जो भी आता है
अपना कर साँस भर
छाँह पा जाता है ।
मैं किसे अपनाऊँ
साँस भर
छाँह कहाँ पाऊँ...?