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पेड़ अर आरी / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
पेड़
कठै‘ई उगै धरती उपर
वां रै पेडै री छाल
ऐकसी हुवै।
अर ऐकसा हुवै वां रा पत्ता
पत्तां रो रंग !
पेड़ भलांई उगै
क्यूबा‘री धरती उपर
भलाई उजबेकिस्तान मांय
उगणै रौ ऐकसो हुवै ढंग
ऐकसी हुवै मुस्कान
वां री डाळ उपर हींडती
गोरी अर काळी छोरया री!
म्हैं सगळा
जाणा इण बात नै
पण नीं हो सकां ऐक
बस आई‘ज बात
आपणै सगळा पर भारी है
क्यूं‘क ठौड़-ठौड़
पेड़ न काटण वाळा
वै ही हाथ है
अर वा ही लोह री आरी है!