भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ पर अधखाया फल / राकेश रोहित
Kavita Kosh से
पेड़ पर अधखाया फल
पृथ्वी के गाल पर चुम्बन का निशान है
यह प्रेम की अधसुनी आवाज़ है
यह सहसा मुड़ कर तुम्हारा देखना है।
यह तुम्हें पुकारते हुए
ठिठक गया मेरा मन है
यह कोई मधुर कथा सुनते हुए अचानक
तुम्हारे आँखों में ढलक आई नींद है।
अधखाए फल से छुपाए नहीं छुपता है
प्यार का मीठा ताज़ा रंग
अधखाए फल से झरते हैं बीज
तो हरी होती है धरती की गोद
अधखाया फल अचानक हथेली पर गिरा
तो मैंने चाँद की तरह उसे समेट लिया
यह धरती पर सितारे बरसने की रात थी
मैंने हौले से चूम लिया उसे
जैसे उनींदे उठ कर तुम्हारा नींद भरा चेहरा।