भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ सी होती है स्त्री / निधि सक्सेना
Kavita Kosh से
पेड़ सी होती है स्त्री
भावों और अनुभावो की असंख्य पत्तियों से लदी
विभिन्न प्रकार की पत्तियाँ
उमंग की पंखाकार पत्तियाँ
सपनों की छुईमुई सी पत्तियाँ
अकुलाहट की त्रिपर्णी पत्तियाँ
ईर्ष्या की दंतीय पत्तियाँ
कुंठा की कंटीली पत्तियाँ
क्षोभ और प्रतिशोध की भालाकार पत्तियाँ
प्रतीक्षा की कुंताभ पत्तियाँ
स्नेह की हृदयाकार पत्तियाँ
प्रेम की एकपर्णी पत्तियाँ
पतझड़ भी एक सतत् प्रक्रिया है
भाव झड़ते रहते हैं
पुनः पुनः अंकुरित होने को
बहुधा कोई भाव मन के किसी प्रच्छन्न कोने में ठहर जाता है
फलित होकर पुष्प बनता है
सृष्टि की हर कविता इसी पुष्प से उपजी सुगंध है.