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पेशोपेश परस्‍पर / लाल्टू

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पशोपेश
शब्‍द ही ऐसा है कि
आप थोड़ी देर सोचते रहें
क्‍या क्‍यों कैसे

परस्‍पर भी शब्‍द है एक और को
पास लाने की अनुभूति देता हुआ
भले ही चीख रहे हों दो पास आए होंठ

जब आदमी पशोपेश में हो
तो किधर जाए
इन दिनों कहीं कोई जगह नहीं बची
लोग इस तरह हैं चारों ओर जैसे समंदर में खारा पानी
परस्‍पर बंद किए दरवाज़े हैं कि खुलते ही नहीं
सड़कों पर चलते जाइए और देर हो जाती है
जब जानते हैं कि एक ही जगह में खड़े हैं

शुक्र है कि शब्‍द हैं
कहीं लिखे जाते हैं
कोई पढ़ता भी है
इस तरह परस्‍पर जूझते हैं हम पशोपेश की स्‍थिति से।

कोई कहीं बढ़ रहा है

कोई कहीं बढ़ रहा है
पाँव पाँव क़दम क़दम बढ़ रहा है मानव शिशु
कोंपल कोंपल पत्ता पत्ता बढ़ रहा पौधा
तितली बनने को बढ़ रहा है कीट
जो दिख रहा है
उससे भी अधिक कुछ दिखता है
जो चलता है चलने के पहले चलता है मन ही मन वह।